# METOO
# मी टू, # हिम्मत, # खुलासा
यशा माथुर
'हैशटैग मी टू' सोशल मीडिया पर हाल में चला और लोकप्रिय हुआ वह कैंपेन है, जिसने महिलाओं को अपने जीवन के स्याह पल साझा करने का मंच दे दिया है। वे अपने साथ हुए यौन शोषण के मामले सामने लेकर आ रही हैं। खुलकर बता रही हैं कि कैसे किसी रिश्तेदार, शिक्षक या दोस्त ने उनके साथ खिलवाड़ किया और उनके विश्वास, आत्मविश्वास और अस्मिता को चोट पहुंचाई। इस कैंपेन को मिली प्रतिक्रिया बताती है कि किस कदर दर्द छुपा था महिलाओं के दिल में जो अब बहकर निकल रहा है। किस कदर हिम्मत थी उनकी कि उन्होंने इन क्षणों को हैंडल किया और इन्हें कड़वा अनुभव मान कर खुद को आगे बढ़ाने का साहस जुटाया। आज वे एकजुट हैं और आवाज उठा रही हैं समाज में गहराई तक पैठ गई इस समस्या के विरुद्ध ...
उसके घर के पास एक टीचर रहता था। पचास का उम्र पार कर चुका था। एक दिन वह अपने स्कूल के बच्चों की कॉपियां चेक कर रहा था कि पड़ोस में रहने वाली बारह साल की लड़की ने पूछा कि अंकल आप क्या कर रहे हैं? तो उसने कहा बेटा तुम भी कॉपी चेक करो। बच्चों को नंबर दो। बच्ची को लाल पेन से गोले बना कर नंबर देने में मजा आ ही रहा था कि एक हाथ उसकी ओर बढ़ा और कुछ ऐसा होने लगा जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। बच्ची को समझ नहीं आया कि अंकल क्या कर रहे हैं? उसे छू क्यों रहे हैं? वह अनमनी हो गई। उसे बहुत बुरा लग रहा था। जैसे-तैसे उसने खुद को छुड़ाया और वहां से बच कर निकल आई। वह छोटी बच्ची आज बड़ी हो गई है, लेकिन अभी तक किसी से कह नहीं पाई कि उसके साथ क्या हुआ था? बस प्रश्न ही रहा जिंदगी भर कि ऐसा क्यों हुआ? लेकिन आज जब वह परिपक्व है और सोशल मीडिया पर सक्रिय है तो उसे मंच मिला है अपनी बात कहने का। 'हैशटैग मी टू' पर वह शेयर कर रही है अपने बचपन के वह स्याह पल। आज उसे वे शब्द मिले हैं, जिनसे उसने वर्षों बाद अपने दिल का बोझ उतारा है।
हमें बेडिय़ां तोडऩी ही होंगी
इस छोटी बच्ची की तरह ही यौन-शोषण चुपचाप सहने वाली हर उस लड़की को आज अपनी बात कहने की हिम्मत मिली है जो ताउम्र तड़पी है, खुद से सवाल किए हैं लेकिन जमाने से कभी कुछ नहीं कहा। सोशल मीडिया पर 'हैशटैग मी टू' कैंपेन उन महिलाओं को हिम्मत दे रहा है जिन्होने यौन शोषण की प्रताडऩा को झेला है। यह अभियान उनसे कह रहा है कि वे घुटे नहीं बल्कि बताएं कि कैसे उनके साथ अपराध, छेडख़ानी और हिंसक मामले हुए। इस अभियान से जुडऩे वाली महिलाओं की फेसबुक और ट्विटर पर ऐसी कई हृदय विदारक कहानियां सामने आ रही हैं जो विकसित देशों से लेकर पिछड़े समाज तक की पोलपट्टी सामने ला रही हैं। हर लड़की कह रही है कि अब बहुत हुआ, अब हम चुप नहीं रह सकते। यह कोई शर्म की बात नहीं है। हमें बेडिय़ां तोडऩी ही होंगी।
कैसे आया 'हैशटैग मी टू' कैंपेन
जब हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वीनस्टीन पर करीब दर्जन भर महिलाओं द्वारा यौन शोषण के आरोप लगाए गए तो अमेरिकी एक्टर अलयासा मिलाने ने ट्विटर पर 'हैशटैग मी टू' कैंपेन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य महिलाओं को अपने साथ होने वाले यौन-शोषण की कहानियों को शेयर करने के लिए प्रोत्साहित करना था। मिलाने बताती हैं कि उनके एक दोस्त ने उन्हें ऐसा कैंपेन चलाने के लिए कहा ताकि लोगों को इस समस्या की भयावहता का पता चल सके। सोशल मीडिया पर 'हैशटैग मी टूÓ कैंपेन के तहत ही मशहूर कॉमेडियन मलिका दुआ ने भी बचपन में अपने साथ हुई यौन शोषण की घटना का खुलासा किया और अपनी पोस्ट में बताया कि 7 साल की उम्र में उनके साथ भी यौन शोषण की घटना हुई थी। मलिका ने लिखा कि मेरी मम्मी कार चला रही थीं और वो पीछे की सीट पर बैठा था। मैं उस समय सात साल की थी।
'हैशटैग आई टू' भी
सोशल मीडिया पर आए 'हैशटैग मी टू' कैंपेन में पुरुष भी सामने आ रहे हैं। कहीं वे भी 'हैशटैग मी टूÓ लिख रहे हैं और खुद के साथ यौन उत्पीडऩ की बात कर रहे हैं तो कहीं महिलाओं के खुलकर बात करने की हिम्मत की प्रशंसा कर रहे हैं। कहीं तो वे 'हैशटैग आई टू' भी लिख रहे हैं। वे 'हैशटैग इट वाज मीÓ और 'हैशटैग आई हैवÓ जैसे अभियान चलाकर यौन शोषण के प्रति शर्मिंदगी व सह-अपराधिता व्यक्त कर रहे हैं। जेएनयू से संस्कृत कंप्यूटेशनल लिंग्विस्टिक्स में पीएचडी कर रही शगुन सिन्हा बताती हैं, 'इस कैंपेन से सिर्फ लड़कियों को ही नहीं उन लड़कों को भी आवाज मिली है जिनका बचपन में शोषण हुआ है। वे छुप कर भी 'हैशटैग मी टूÓ पोस्ट कर रहे हैं। अपना स्टेटस डाल रहे हैं और अपनी आपबीती बता रहे हैं।Ó जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी, गुडग़ांव की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिल्पी झा भी कहती हैं, 'सोशल मीडिया पर इस अभियान से एक कलेक्टिव कॉशंसनेस बन रहा है। 'हैशटैग मी टूÓ के साथ कई लड़कों ने लिखा कि 'हैशटैग आई टूÓ। हमने भी कभी मजे लिए क्योंकि हमें इसमें कभी कुछ गलत ही नहीं लगा। हमें किसी ने टोका ही नहीं कि यह गलत है, हमें किसी ने बताया ही नहीं कि यह गलत है। पुरुष अपनी गलती मान रहे हैं और खुलकर सामने आ रहे हैं। यह बड़ी बात है। अच्छी पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।'
चुप्पी देती है छेडऩे का अधिकार
प्रियदर्शिनी अपनी पोस्ट में लिखती हैं कि चार साल की थी मैं, बस भरी हुई थी, पापा की गोद में थी। पापा ने सीट पर बैठे दादा की गोद में मुझे दे दिया। दादा ने वह हरकत की, जो कोई सोच भी नहीं सकता। मैंने कई बार पापा की तरफ देखा लेकिन उन्होंने मेरी पीड़ा को समझा ही नहीं। इसी तरह से अनुप्रिया अपडेट करती हैं कि मैं जब छोटी थी, हमारे पड़ोस में एक लड़का रहता था जिसे हम भईया कहते थे। दिन में हम छुपमछुपाई खेल रहे थे। घर के पीछे के ब्लॉक में हम छुपते तो वे मुझे पकड़ कर अपनी गोदी में बिठा लेते। मुझे बहुत खराब लगता। मैं उन्हें छोडऩे के लिए कहती तो वे कहते चुप हो जाओ, हम पकड़े जाएंगे। उस समय मैं कुछ समझ नहीं पाती थी, लेकिन आज मुझे सब समझ में आता है। मुझे अपने लिए बहुत खराब लगता है। मैं सदमा महसूस करती हूं। मैं अपनी बेटी को जरूर बताऊंगी कि उसे किससे मिलना चाहिए और किससे नहीं। सोशल मीडिया पर शेयरिंग से टीन एजर्स को भी यह पता लगेगा कि उन्हें किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी है। चुप रहकर हम उन्हें छेडऩे का अधिकार दे देते हैं। मैं समझती हूं कि उस आदमी को जरूर बताना चाहिए कि उसने क्या किया है? नार्वे के डॉ. प्रवीण झा अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि देश हो या विदेश, दरअसल यौन शोषण कहीं भी ढंग से बाहर नहीं आ पाता। खासकर कम उम्र में हो तो। इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं, सामाजिक भी, सांस्कृतिक भी। यह दबा रह जाता है।
कड़वे अनुभवों ने बनाया मजबूत
'हैशटैग मी टू' कैंपेन से सभी को पता चला कि दामिनी केस का छोटा वर्जन हर किसी के साथ होता है। यह मुझसे जुड़ा कैंपेन है, मेरी जिंदगी से निकली चीज है। इसलिए इस पर मैंने प्रतिक्रिया व्यक्त की। मैंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अपने साथ होने वाले यौन शोषण को फेसबुक पर पोस्ट किया है। आज मुझे कोई डर नहीं है कि कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा? लेकिन पहले मैं हिचकिचा रही थी कि अपना अनुभव शेयर करूं या नहीं। फिर मुझे लगा कि मैं नहीं बोलूंगी तो एक आवाज कम हो जाएगी। मेरे दोस्तों ने मेरी सराहना की। उन्हें यह आंख खोलने जैसा लगा। उन्हें यह नहीं पता था कि उनके प्रियजनों के साथ भी ऐसा हुआ है। मेरे अनुभवों ने तो मुझे मजबूत बनाया है, लेकिन सोशल मीडिया में इतनी तादाद में आए मैसेज बताते हैं इस तरह का यौन शोषण आम होता है।
शगुन सिन्हा
पीएचडी स्टूडेंट, जेएनयू
स्वीकार्यता को दी है चुनौती
अभी तक यौन शोषण का मतलब सिर्फ बलात्कार ही समझा जाता था। इससे नीचे कुछ भी होता था उसे आम समझा जाता था। समाज ने यह कभी नहीं सोचा कि इससे भी लड़कियों का विश्वास हिल जाता है। कोई भी चीज जो आपके कदम रोकती है तो वह यौन शोषण है, 'मी टू' है। बॉस की गलत हरकत, परिवार के अपने सदस्य या नाते-रिश्तेदार की हरकत, सड़क पर अनजाने आदमी की नजर, अगर लड़कियों की राह रोकती है तो वह 'मी टूÓ है। यह कैंपेन किसी एक चेहरे का नहीं, बल्कि मानसिकता का कैंपेन है। इसमें डर या शर्म से ज्यादा स्वीकार्यता हो गई थी। इस स्वीकार्यता को हमने चुनौती दी है। बनारस और चंडीगढ़ की घटना भी समाज में बन चुकी स्वीकार्यता को चुनौती थी। लिंग समानता के लिए हमें समाज का नजरिया बदलना होगा। एक छोटा कदम ही परिवर्तन लाता है। बहुत बड़ी चढ़ाई है, हर एक घटना और अभियान से हम एक-एक पड़ाव पार कर रहे हैं।
शिल्पी झा
एसोसिएट प्रोफेसर, जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी, गुडग़ांव
दुनिया में भरे पड़े हैं ऐसे लोग
हॉलीवुड में हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वीनस्टीन जैसे बहुत सारे लोग हैं जो यौन शोषण करने की कोशिश करते हैं और ऐसी हरकतें हर जगह होती हैं। मुझे लगता है कि भारत या कहीं और इस तरह के लोग भरे पड़े हैं। आने वाले समय में हॉलीवुड और बॉलीवुड में भी इस तरह की और खबरें आएंगी।
प्रियंका चोपड़ा
एक्टर
हल सोचना होगा
अगर लोग इस समस्या की भयावहता को समझ जाते हैं और इस बारे में बोलने के लिए सामने आते हैं तो बहुत अच्छा है। लेकिन हमें समस्या के हल के बारे में गहराई से सोचना होगा।
कोंकणा सेन
एक्टर
मैं 'हैशटैग मी टू' कैंपेन का समर्थन करती हूं। इस तरह से महिलाओं का सामने आना महत्वपूर्ण है।
राधिका आप्टे
एक्टर
-मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था 'वल्र्ड विजन इंडियाÓ ने भारत में 45,844 के बीच एक सर्वेक्षण किया, जिसमें खुलासा हुआ कि हर दूसरा बच्चा यौन उत्पीडऩ का शिकार हुआ है।
-हर पांच में से एक बच्चा यौन उत्पीडऩ के खौफ से खुद को असुरक्षित महसूस करता है।
-हर चार में से एक परिवार ने बच्चे के साथ हुए यौन शोषण की शिकायत तक नहीं की। पीडि़तों में लड़के-लड़कियों की संख्या करीब-करीब बराबर बताई गई है। -यही नहीं, करीब 98 फीसदी मामलों में बच्चों के परिचित या संबंधी ही यौन शोषण करने वाले थे।
10.3 प्रतिशत की वृद्धि
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2016 में महिलाओं के साथ यौन शोषण के 579 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं 2015 में यह 525 थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत की टॉप 50 कंपनियों ने यह माना है कि पिछले एक साल में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण के मामले में 10.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
हर एक सेकंड में अपराध
देश में हर एक सेकंड में बच्चों के खिलाफ कोई न कोई अपराध होता है, लेकिन सामाजिक बदनामी के डर से इनमें से ज्यादातर मामलों की शिकायत पुलिस में नहीं की जाती।
कैलाश सत्यार्थी
नोबेल पुरस्कार विजेता
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